निवेदन

श्याम बाबा के चरणों में समर्पित वेबसाइट, जिससे श्याम बाबा और श्याम जगत की जानकारियों को एक जगह पर लाकर श्याम भक्तों को अवगत कराना है। यहाँ श्याम बाबा, खाटू धाम, श्याम बाबा के अनमोल भक्त रत्न, श्याम बाबा के नित्य करने वाले पाठों का संग्रह, भजनमाला, आरती और पुष्पांजलि एवं भावांजलि का संकलन है। श्याम बाबा के पाठ, भजनमाला, आरती, पुष्पांजलि एवं भावांजलि को सभी भक्तजन पढ़ने के साथ-साथ डाउनलोड करके नित्य पाठ कर सकते हैं, भजनों आदि को स्वयं गा सकते हैं और सभी का ऑडियो जो सुप्रसिद्ध गायकों के स्वर में है, उसे भक्ति के साथ सुन भी सकते हैं। खाटू धाम में रुकने की जगहों की जानकारी एवं श्याम बाबा के मंदिरों की जानकारी भी दी गई है। भक्तजनो से अनुरोध है कि वे अपने क्षेत्र के श्याम बाबा के मंदिरों की जानकारी; “आपकी राय” के माध्यम से भेजें ताकि उन्हें भी इस संग्रह में शामिल किया जा सके।
“कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।
सुमिरन दीप जलाए के, धरुँ हृदय में ध्यान,
शरण पड़े की लाज रखो, खाटू के बाबा श्याम।”
- पंकज एवं नीना सराफ
सहयोगी संस्थाएँ:
जय श्री श्याम प्रचार मंडल (कोलकाता)
श्री श्याम प्रेम मंडल
श्री शाकम्बरी भक्त मंडल
श्री श्याम मंदिर न्यू टाउन ट्रस्ट
।। श्री श्याम का महात्म्य ।।
गीता के मतानुसार जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब भगवान साकार रूप धारण कर साधु एवं सज्जन पुरुषों का उद्धार तथा पाप कर्म में प्रवृत्त रहने वालों का विनाश कर धर्म की स्थापना किया करते हैं। उनके अवतार ग्रहण की न तो कोई निश्चित समय होता है और न कोई निश्चित रूप। धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि को देखकर जिस समय वे अपना प्रकट होना आवश्यक समझते हैं, तभी प्रकट हो जाते हैं। ऐसे कृपालु भगवान के पास अपने अनन्य भक्त के लिए कुछ भी अदेय नहीं होता। परन्तु सच्चा भक्त बहुत बिरला ही मिलता है। यद्यपि उस सच्चिदानन्द भगवान के भक्तों की विभिन्न कोटियाँ होती हैं, परन्तु जो प्राणी संसार, शरीर तथा अपने आपको सर्वथा भूलकर अनन्य भाव से नित्य प्रेम करता है, वही भगवान को सर्वाधिक प्रिय होता है। भक्तों की इस कोटि में वीर शिरोमणि बर्बरीक भी आते हैं। महाभारत के युद्ध में उपस्थित होकर उस महाबली ने अपने एक ही बाण से समस्त वीरों को आश्चर्य में डाल दिया। रणभूमि के पूजनार्थ शीश का दान दे अपनी विमल भक्ति से उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को भी मुग्ध कर दिया। उनके इसी सहर्ष दान एवं अद्भुत वीरता पर प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें कलियुग में अपने ही रूप में पूजित होकर भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने का वरदान दिया। यही नहीं, अपितु सम्पूर्ण महाभारत को देखने हेतु उनके सिर को पुनर्जीवित भी किया। वही श्रेष्ठ वीर बर्बरीक कलियुग में राजस्थान के जयपुर राज्य के खाटू नामक पवित्र स्थान में श्याम कुण्ड में श्री श्यामजी नाम धारण कर प्रकट हुए। भगवान सर्वव्यापक हैं। ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण एवं परमाणु में उनका निवास है। विश्व की समस्त विभूतियाँ उन्हीं के प्रकाश से जगमगा रही हैं। यद्यपि उनकी प्राप्ति सर्वत्र हो सकती है, परन्तु जिस विशेष स्थान में उनका अविर्भाव होता है, उसका अपना विशिष्ट महत्व होता है। इस स्थान को भगवान श्री श्यामजी ने जन समाज के कल्याणार्थ स्वयं अपनाया है। यही कारण है कि आज बाबा श्यामजी के दर्शनाभिलाषी देश के कोने-कोने से यहाँ आते हैं और उनका दर्शन लाभ कर स्वयं को कृतार्थ करते हैं। इस पुण्य-स्थली पर विशुद्ध हृदय से उत्पन्न अभिलाषाओं को तत्काल पूर्ण होते देखा जाता है। दर्शन के फलस्वरूप अनेक नेत्रविहीनों को ज्योति प्राप्त हुई है, कुष्ठ से जर्जर प्राणियों ने सुंदर एवं स्वच्छ शरीर पाया है। कितने संतानविहीनों ने संतान का सुख देखा है तथा धन की इच्छा रखने वालों ने धन की प्राप्ति की है। इस प्रकार भगवान के इस परम पुनीत क्षेत्र में विविध प्रकार के चमत्कार सदैव देखे जाते हैं। खाटू के अतिरिक्त भक्तजनों ने देश के विभिन्न स्थानों पर भी श्री श्यामजी के उपासनार्थ अनेक देवालयों की स्थापना करवाई है। परन्तु जैसा कहा जा चुका है कि खाटू को जनसाधारण के उपकार के लिए भगवान ने स्वयं अपनाया है, इसी से पुण्य-स्थल का सबसे अधिक महत्व है।

। । सच्चे दरबार की जय । ।


श्री श्याम प्रभु का जीवन परिचय







।। श्याम प्रभु का जीवन परिचय ।।
पुण्य भारत भूमि की यह विशेषता रही है कि यहाँ पर अनेक महापुरुषों ने अपनी पावन संस्कृति से प्रेरणा लेकर अपने आप को इतना श्रेष्ठ बना लिया कि स्वयं ईश्वर को उन्हें अपने बराबर मानने और समाज को उन्हें ईश्वर के रूप में मानने का आदेश देना पड़ा। ऐसा ही एक महान आत्मा का जन्म द्वापर युग में भीम पुत्र घटोत्कच और दैत्यराजमुर की पुत्री कामकंटकटा के घर हुआ। इनके घुँघराले बालों के कारण इनका नाम बर्बरीक रखा गया। भगवान श्री कृष्ण के परामर्शानुसार इन्होंने महीसागर तीर्थ स्थित गुप्त क्षेत्र में नारद जी द्वारा बुलाई गई नौ दुर्गाओं की निष्काम तपस्या कर दिव्य बल, तीन बाण एवं धनुष प्राप्त किया। कुछ समय बाद कुरुक्षेत्र में कौरवों-पाँडवों की सेना एकत्रित हुई, उसी समय बर्बरीक ने माता से युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की। माता ने कहा- "यदि युद्ध देखकर तुम्हारी भी इच्छा युद्ध की हुई, तो क्या करोगे?" इन्होंने माता को वचन दिया कि "मैं हारने वाले को सहारा दूँगा।"
जब श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टि से एक वीर बालक को नीले घोड़े पर सवार होकर तीव्रगति से युद्धभूमि की ओर आते देखा, तो वह ब्राह्मण का वेश बनाकर पीपल के नीचे बैठ गए। बर्बरीक को रोककर पूछा कि "वीर, तुम केवल तीन वाण लेकर युद्ध में क्या कर पाओगे?" तब बर्बरीक ने कहा- "हे ब्राह्मण देवता, इनमें से एक ही बाण दोनों पक्षों की सम्पूर्ण सेना के लिए पर्याप्त है।"
इस पर श्री कृष्ण ने कहा- "अच्छा, तुम इस पीपल के पत्तों को बींध कर दिखलाओ।" वीर बर्बरीक तुरंत तैयार हो गए, और उनके बाण छोड़ते ही बाण सब पीपल के पत्ते बींधकर श्री कृष्ण के पाँव की परिक्रमा करने लगा। श्री कृष्ण ने पाँव के नीचे पीपल का एक पत्ता छुपा रखा था, उन्होंने तुरन्त अपना पैर हटाया और तीर वह पत्ता भी बींध कर वापस वीर बर्बरीक के तरकस में पहुँच गया। तब श्री कृष्ण ने कहा- "बालक, तुम महावीर हो, इसमें कोई संशय नहीं है। परन्तु युद्ध में कौरव या पाण्डव, किसका साथ दोगे?"
तब महाबली ने उत्तर दिया- "मैं माँ के वचनानुसार हारे का साथ दूँगा।" यह सुनकर श्री कृष्ण घबड़ा गए, उन्होंने सोचा कि यह तो सम्पूर्ण युद्ध का नक्शा ही बदल देगा। तब उन्होंने वीर बर्बरीक से एक सोची समझी चाल खेली और बर्बरीक से कहा- "हे वीर, इसरणभूमि की पूजा के लिए एक सम्पूर्ण निष्काम तपस्वी महावीर महादानी सम्पूर्ण क्षत्रिय की बलि देना आवश्यक है। इस समय इस कसौटी पर सम्पूर्ण पृथ्वी पर मात्र तीन व्यक्ति तुम, अर्जुन और मैं ही खरे उतरते हैं। विधि के विधान से मेरे और अर्जुन के माध्यम से अनेक कार्य होने शेष हैं। अतः तुम्हीं इस कार्य को कर सकते हो।"
उस समय महाबली ने बिना एक भी क्षण व्यर्थ किए हाँ कर दी, परन्तु साथ में यह भी कहा कि "मैं माँ से कहकर आया था एवं मेरी भी इच्छा है कि मैं सम्पूर्ण युद्ध देखूँ।" उस फाल्गुन सुदी एकादशी को रात्रि भर भगवान का संकीर्तन पूजन किया और फाल्गुन सुदी द्वादशी की प्रातः बेला में अपना शीश अपने हाथ से ही काट कर भगवान को अर्पित कर दिया।
।। बोलो शीश के दानी की जय ।।
तब भगवान ने दिव्य शक्तियों के माध्यम से वीर बर्बरीक के शीश को एक ऊँचे शिखर पर स्थापित कर दिया। युद्ध की समाप्ति पर पाण्डव वीरों को घमण्ड को तोड़ने के लिए श्री कृष्ण सबको साथ लेकर बर्बरीक के पास पहुँचे और उनसे युद्ध का हाल पूछा। तब महादानी महाबली बर्बरीक ने बताया कि युद्ध में चारों तरफ सिर्फ भगवान श्री कृष्ण का चक्र सुदर्शन ही महाकाल का रूप धर सेनाओं का संहार कर रहा था और द्रौपदी महाकाली के रूप में पीछे-पीछे रक्तपान कर रही थी। यह सुनकर आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी और पाण्डव लज्जित हो गए।
तब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि "बर्बरीक, मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि कलियुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे। तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा। तुम्हारे नमन, वन्दन, पूजन से ही कलियुग के समस्त दोषों का निवारण करके प्राणीमात्र भला सागर से पार हो सकेगा। समय बदला, थल से जल, जल से थल हुआ, प्राचीन सरस्वती नदी की एक शाखा रूपावती नदी के किनारे खटवांग राजा की राजधानी खाटू में कई सौ साल पूर्व एक दिव्य कुण्ड में यह शीश प्रकट हुआ। स्कन्द पुराण में माहेश्वर कुमारिका खण्ड के अध्याय 60 से 66 तक इस कथा का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
शीश के दानी तीन बाण धारी-बर्बरीक बाबा श्याम को जो भी भक्त सच्चे मन, श्रद्धा, और भक्तिभाव से मानते हैं, श्यामप्रभु की कृपा उन पर पूर्ण रूप से बरसती है।
भारतवर्ष के विभिन्न भागों के लोग अपने कुल देवता (कृष्ण स्वरूप) श्याम बाबा को पूजते हैं और खाटू श्यामजी में फाल्गुन शुक्ला द्वादशी एवं ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी को वार्षिक उत्सव (मेले) में पहुँचकर भक्ति प्रदर्शित करते हैं। उन कुटुंबों में आजीविका के लिए, स्वदेशी यदा जीविका के अनुसार देश के किसी भाग में जा बसे, विवाह तथा जन्म के उपलक्ष्य में जात (जडुले) के निमित्त खाटू श्यामजी के स्थान पर उपस्थित होकर श्रद्धा निवेदन करना एक पालनीय कर्तव्य माना जाता है। स्वामनी, स्वामन प्रसाद, चूरमा की प्रधानता होती है। मंदिर का जीर्णोद्धार करके आधुनिक रूप दिया गया है और दर्शनार्थियों हेतु आवासीय सुविधाएँ (नवनिर्मित धर्मशालाएँ सैकड़ों से अधिक हैं) उपलब्ध हैं। दूर-दूर से लोग निशान लेकर आते हैं और मंदिर के ऊपरी हिस्से में लहराते हैं। प्रत्येक मास की शुक्ला द्वादशी को लोग अपने घरों में श्यामजी के नाम पर मानता (पूजा) करते हैं। फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को खाटू में श्यामजी का बड़ा मेला होता है।
बर्बरीक (खाटू श्याम) के महान बलिदान से काफी प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे। वरदान देने के बाद उनका शीश खाटू नगर, सीकर जिला में दफनाया गया, इसलिये उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि एक गाय उस स्थान पर आकर प्रतिदिन अपने स्तनों से दूध की धारा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में जब उस स्थान की खुदाई हुई तो वहां पर शीश प्रकट हुआ, जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्राह्मण को सौंप दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मंदिर निर्माण के लिए प्रेरित किया गया और वह शीश मंदिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित हुआ। तो उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मंदिर में सुशोभित किया गया। इसीलिए हमेशा देवउठनी एकादशी को ही श्री खाटू श्याम जी का जन्मदिन मनाया जाता है।
फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को सबसे भव्य मेला लगता है। इसे खाटू श्यामजी यानी श्याम बाबा का मूल जन्मदिन मानते हैं। इस दिन भक्तजन केक काटकर भी बाबा का जन्मदिन मनाते हैं। इस अवसर पर खाटू श्यामजी के दर्शन विशेष फलदायी माने जाते हैं। कहते हैं कि इस दिन बाबा का जो दर्शन करते हैं, उनकी मनोकामना बाबा जल्दी पूरी कर देते हैं।
फाल्गुन मेला बाबा खाटू श्याम जी का मुख्य मेला है। यह मेला फाल्गुन मास (फरवरी/मार्च) में तिथि के आधार पर अष्टमी से बारह तक 5 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है। फाल्गुन मास की शुक्ला ग्यारस को मेले का मुख्य दिन होता है। देश-विदेश से आए हुए सभी श्रद्धालु बाबा खाटू श्याम जी का श्रद्धापूर्ण दर्शन करते हैं और दर्शन करने के पश्चात् भजन एवं कीर्तन का भी आनंद लेते हैं। भजन संध्या में तरह-तरह के कलाकार आते हैं जो रातभर भजन एवं कीर्तन करते हैं। फाल्गुन मास में अधिकतम संख्या में लाखों भक्तगण दर्शन के लिए आते हैं। भक्तों की लाखों की संख्या को देखते हुए प्रशासन की तरफ उचित व्यवस्था की जाती है ताकि किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो। इसके अलावा खाटू नगरी में बहुत सारी धर्मशालाएँ, पार्किंग और होटलों की भी व्यवस्था है। कुछ होटल तो बाबा के नाम से जाने जाते हैं जैसे राधेश्याम होटल, मोर्वी होटल और लखदातार इत्यादि।
हर देश से श्रद्धालु खाटू नगरी में बाबा के दर्शन के लिए आते हैं जिनमें कुछ श्रद्धालु ऐसे होते हैं जो रिंगस से पदयात्रा (निशान यात्रा) करते हुए बाबा के धाम जाते हैं। निशान यात्रा करते समय भक्तगण बाबा खाटू श्याम जी का ध्वजा/नारियल के साथ-साथ बाबा जी की झांकी भी निकालते हैं। झांकी को पूरे हर्षोल्लास और बैण्ड-बाजे के साथ निकाला जाता है। कुछ श्रद्धालु तो दण्डवत परिक्रमा करते हुए बाबा के मंदिर आते हैं। इस शोभायात्रा के दौरान बहुत सारी आतिशबाजी के साथ-साथ भक्तों को जगह-जगह प्रसाद वितरण भी किया जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि- यश, दान, किसी भी रूप में त्यागने योग्य नहीं हैं। तप में व्रतों की महिमा अधिक है। सामान्य व्रत में एकादशी व्रत कहा गया है। जैसे सब देवताओं में विष्णु की प्रधानता है, वैसे व्रतों में एकादशी व्रत की प्रधानता है। एकादशी व्रत से सभी रोग, द्वेष शांत होते हैं।
दोनों पक्षों की एकादशी में भोजन न करें। अपनी श्रद्धा भक्ति के अनुसार जो संभव हो, करना चाहिए। निर्जल व्रत, उपवास व्रत केवल एक बार अन्न रहित दुग्धादि पेय पदार्थ का ग्रहण करें। दिनभर व्रत करके रात्रि में फलाहार करें। अशक्त, वृद्ध, बालक, रोगी भी जो व्रत न कर सकें, तो वह यथासंभव अन्न का त्याग करें। कीर्तन, नाम जप, सुगंधित फूलों से भगवान का पूजन करें।
जनाना शौच और मरणाशौच में एकादशी को भोजन न करें।
।। खाटू धाम : इतिहास की नजर से ।।
वीर भूमि राजस्थान के हृदय शेखावाटी में स्थित जिला सीकर के अंतर्गत श्री खाटू धाम का वर्णन इतिहास में दसवीं शताबदी से मिलना प्रारंभ हो जाता है। पौराणिक कथाओं में जिस खटवांग नगरी का उल्लेख मिलता है, वह महाभारत काल के पहले का है। पंद्रहवीं शताबदी में आमेर के राजा शैखजूर द्वारा शेखावाटी बसाने के समय में बर्बरीक श्याम देवरे का उल्लेख मिलता है। सत्रहवीं सदी में खंडेला के राजा एवं औरंगजेब के बीच श्याम मंदिर को तोड़ने के लिए हुए युद्ध का पूर्ण विवरण औरंगजेब नामा में उपलब्ध है।
खाटूश्याम मंदिर का निर्माण सबसे पहले 1027 ई. में रुपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने करवाया था। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि प्राचीनतम मंदिर के स्थान पर इस समय मस्जिद खड़ी हुई है। सन् 1620 में अजमेर के महाराजा के पुत्र अभय सिंह ने श्याम मंदिर की आधारशिला रखी और सदियों पुराने बर्बरीक के शीश की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई।
सन् 1679 में मुगल सेनापति ने शेखावाटी पर हमला कर इनको नष्ट किया। तब श्याम मंदिर को लेकर नागा साधुओं ने मुगल सेनापति भड़ेच से मोर्चा लिया था। इसका प्रमाण खाटू से उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर नागा साधुओं के धगले और समाधियों में आज भी मौजूद है।
सन् 1777 में जोधपुर राज्य के सेनापति विजयराज भंडारी ने वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया एवं शीश की प्राण-प्रतिष्ठा पंडित फकीर दास तिवाड़ी से करवाई। बाद में कलकत्ता के सेठ मोतीलाल कानोड़िया ने इस पुराने मंदिर को नया रूप दिया। स्वतंत्रता के पूर्व यह जयपुर रियासत के अधीन महाराजा माधव सिंह के जागीरदार हरिसिंह जी के पास था और तब से सरकारी रिकॉर्ड में खाटू श्याम जी नाम से जाना जाता है।
खाटू धाम के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
ग्रीष्म समय तालिका | शीतकालीन समय तालिका |
---|---|
प्रातः 4:30 से दोपहर 1 बजे तक | प्रातः 5:30 से दोपहर 1 बजे तक |
सायं 4 से रात्रि 10 बजे तक | सायं 5 से रात्रि 9 बजे तक |
नोट: कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूरी रात्रि श्री श्याम बाबा के पट खुले रहते हैं। इस दिन श्री श्याम जयन्ती (जन्मदिन) मनाई जाती है। फाल्गुन मेले में यात्रियों की काफी भीड़ होने के कारण फाल्गुन शुक्ला दशमी एवं एकादशी को भी बाबा के पट पूरी रात्रि खुले रहते हैं।
खाटू मंदिर आरती और पूजा का समय
आरती | ग्रीष्मकालीन समय | शीतकालीन समय |
---|---|---|
मंगला आरती | प्रातः 4:30 बजे | प्रातः 5:30 बजे |
श्रृंगार आरती | प्रातः 7:00 बजे | प्रातः 8:00 बजे |
भोग आरती | दोपहर 12:30 बजे | दोपहर 12:30 बजे |
संध्या आरती | सायं 7:30 बजे | सायं 6:30 बजे |
शयन आरती | रात्रि 10 बजे | रात्रि 9 बजे |
नोट: आरती का समय श्री श्याम मंदिर समिति, खाटू श्याम द्वारा निश्चित किया जाता है जो बदल भी सकता है।
खाटूधाम के मंदिर में श्री श्याम बाबा की पोशाक बागा का नाप
दुपट्टा एवं परदे का नाप- नेफा 9 इंच ; लम्बाई 40 इंच ; घेर 8 मीटर या ज्यादा ;
पीछे का दुपट्टा- चौड़ाई 44 इंच ; लम्बाई 3 गज ;
दरवाजे का परदा- चौड़ाई 48 इंच ; लम्बाई 72 इंच।
संशोधित पाठ:
खाटू, जिसे “खाटू श्यामजी का” भी कहा जाता है, राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यहां का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन रींगस है, जहां दिल्ली, जयपुर और अन्य प्रमुख स्टेशनों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
खाटू, रींगस से 17 किमी और जयपुर से 80 किमी की दूरी पर स्थित है।
सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो खाटू से लगभग 80 किमी दूर है।
।। खाटू श्यामजी से राजस्थान के अन्य देव स्थानों की अनुमानित दूरी ।।
- रींगस – 17 किमी
- दातारामगढ़ – 30 किमी
- जयपुर – 80 किमी
- उदयपुर वाया जयपुर – 515 किमी
- अजमेर वाया जयपुर – 213 किमी
- श्रीनाथद्वारा वाया जयपुर – 490 किमी
- पुष्कर (अजमेर) वाया जयपुर – 490 किमी
- चुरीधाम (श्री श्याम मंदिर) – 115 किमी
- दिल्ली वाया रींगस – 266 किमी
- दिल्ली वाया जयपुर – 365 किमी
- लोहार्गलजी वाया रींगस – 165 किमी
- झुंझुनू (राणी सती) वाया रींगस – 132 किमी
- सालासर वाया रींगस – 122 किमी
- सुजानगढ़ (तिरुपति बालाजी) – 150 किमी
- जीणमाता वाया रींगस – 64 किमी
- जीणमाता वाया दातारामगढ़ – 27 किमी
- रामदेवजी वाया रींगस – 66 किमी
- शाकंभरी माता वाया उदयपुरवाटी – 88 किमी
- मेहंदीपुर बालाजी – 200 किमी

।। खाटू धाम : इतिहास की नजर से ।।
वीर भूमि राजस्थान के हृदय शेखावाटी में स्थित जिला सीकर के अंतर्गत श्री खाटू धाम का वर्णन इतिहास में दसवीं शताबदी से मिलना प्रारंभ हो जाता है। पौराणिक कथाओं में जिस खटवांग नगरी का उल्लेख मिलता है, वह महाभारत काल के पहले का है। पंद्रहवीं शताबदी में आमेर के राजा शैखजूर द्वारा शेखावाटी बसाने के समय में बर्बरीक श्याम देवरे का उल्लेख मिलता है। सत्रहवीं सदी में खंडेला के राजा एवं औरंगजेब के बीच श्याम मंदिर को तोड़ने के लिए हुए युद्ध का पूर्ण विवरण औरंगजेब नामा में उपलब्ध है।
खाटूश्याम मंदिर का निर्माण सबसे पहले 1027 ई. में रुपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने करवाया था। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि प्राचीनतम मंदिर के स्थान पर इस समय मस्जिद खड़ी हुई है। सन् 1620 में अजमेर के महाराजा के पुत्र अभय सिंह ने श्याम मंदिर की आधारशिला रखी और सदियों पुराने बर्बरीक के शीश की प्राण-प्रतिष्ठा करवाई।
सन् 1679 में मुगल सेनापति ने शेखावाटी पर हमला कर इनको नष्ट किया। तब श्याम मंदिर को लेकर नागा साधुओं ने मुगल सेनापति भड़ेच से मोर्चा लिया था। इसका प्रमाण खाटू से उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर नागा साधुओं के धगले और समाधियों में आज भी मौजूद है।
सन् 1777 में जोधपुर राज्य के सेनापति विजयराज भंडारी ने वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया एवं शीश की प्राण-प्रतिष्ठा पंडित फकीर दास तिवाड़ी से करवाई। बाद में कलकत्ता के सेठ मोतीलाल कानोड़िया ने इस पुराने मंदिर को नया रूप दिया। स्वतंत्रता के पूर्व यह जयपुर रियासत के अधीन महाराजा माधव सिंह के जागीरदार हरिसिंह जी के पास था और तब से सरकारी रिकॉर्ड में खाटू श्याम जी नाम से जाना जाता है।
खाटू धाम के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
ग्रीष्म समय तालिका | शीतकालीन समय तालिका |
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प्रातः 4:30 से दोपहर 1 बजे तक | प्रातः 5:30 से दोपहर 1 बजे तक |
सायं 4 से रात्रि 10 बजे तक | सायं 5 से रात्रि 9 बजे तक |
नोट: कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूरी रात्रि श्री श्याम बाबा के पट खुले रहते हैं। इस दिन श्री श्याम जयन्ती (जन्मदिन) मनाई जाती है। फाल्गुन मेले में यात्रियों की काफी भीड़ होने के कारण फाल्गुन शुक्ला दशमी एवं एकादशी को भी बाबा के पट पूरी रात्रि खुले रहते हैं।
खाटू मंदिर आरती और पूजा का समय
आरती | ग्रीष्मकालीन समय | शीतकालीन समय |
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मंगला आरती | प्रातः 4:30 बजे | प्रातः 5:30 बजे |
श्रृंगार आरती | प्रातः 7:00 बजे | प्रातः 8:00 बजे |
भोग आरती | दोपहर 12:30 बजे | दोपहर 12:30 बजे |
संध्या आरती | सायं 7:30 बजे | सायं 6:30 बजे |
शयन आरती | रात्रि 10 बजे | रात्रि 9 बजे |
नोट: आरती का समय श्री श्याम मंदिर समिति, खाटू श्याम द्वारा निश्चित किया जाता है जो बदल भी सकता है।
खाटूधाम के मंदिर में श्री श्याम बाबा की पोशाक बागा का नाप
दुपट्टा एवं परदे का नाप- नेफा 9 इंच ; लम्बाई 40 इंच ; घेर 8 मीटर या ज्यादा ;
पीछे का दुपट्टा- चौड़ाई 44 इंच ; लम्बाई 3 गज ;
दरवाजे का परदा- चौड़ाई 48 इंच ; लम्बाई 72 इंच।
संशोधित पाठ:
खाटू, जिसे “खाटू श्यामजी का” भी कहा जाता है, राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक प्रमुख तीर्थस्थल है।
यहां का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन रींगस है, जहां दिल्ली, जयपुर और अन्य प्रमुख स्टेशनों से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
खाटू, रींगस से 17 किमी और जयपुर से 80 किमी की दूरी पर स्थित है।
सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा जयपुर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो खाटू से लगभग 80 किमी दूर है।
।। खाटू श्यामजी से राजस्थान के अन्य देव स्थानों की अनुमानित दूरी ।।
- रींगस – 17 किमी
- दातारामगढ़ – 30 किमी
- जयपुर – 80 किमी
- उदयपुर वाया जयपुर – 515 किमी
- अजमेर वाया जयपुर – 213 किमी
- श्रीनाथद्वारा वाया जयपुर – 490 किमी
- पुष्कर (अजमेर) वाया जयपुर – 490 किमी
- चुरीधाम (श्री श्याम मंदिर) – 115 किमी
- दिल्ली वाया रींगस – 266 किमी
- दिल्ली वाया जयपुर – 365 किमी
- लोहार्गलजी वाया रींगस – 165 किमी
- झुंझुनू (राणी सती) वाया रींगस – 132 किमी
- सालासर वाया रींगस – 122 किमी
- सुजानगढ़ (तिरुपति बालाजी) – 150 किमी
- जीणमाता वाया रींगस – 64 किमी
- जीणमाता वाया दातारामगढ़ – 27 किमी
- रामदेवजी वाया रींगस – 66 किमी
- शाकंभरी माता वाया उदयपुरवाटी – 88 किमी
- मेहंदीपुर बालाजी – 200 किमी
Dharmashalaya

श्याम बाबा के मंदिर की सूची

।। भक्त शिरोमणि श्यामबहादुरजी का जीवन परिचय ।।
श्री श्याम बहादुरजी का जन्म फर्रुखाबाद (उ.प्र.) में संवत् 1933 भादो सुदी नवमी को हुआ था। जब इनकी उम्र लगभग ढाई साल की थी, तब इनके बावा इनको लेकर अपने पैतृक गाँव रेवाड़ी (राजस्थान) आ गए।
एक बार इनके परिवार ने श्याम बावा का जागरण करवाया, वहीं पर श्याम प्रभु ने इनको साक्षात् दर्शन दिए। उसी दिन से इन्होंने अपना जीवन श्याम प्रभु के नाम कर दिया।
इनके अंदर श्याम प्रभु की भक्ति का यह आलम था कि यह अपनी दिनचर्या को छोड़कर दिनभर श्याम प्रभु में लीन रहते थे। इनकी भक्ति में इतनी शक्ति थी कि इनके द्वारा किसी भी भक्त को दिए गए आशीर्वाद को पूर्ण करने के लिए श्याम प्रभु को विवश होना पड़ता था।
एक बार संवत् 1977 में फाल्गुन में बारस को खाटू धाम गए तो श्याम प्रभु के मंदिर के दरवाजे बंद थे। इनके कहने पर जब बाबा के सेवकों ने दरवाजे नहीं खोले तो इन्होंने बाबा का नाम लेकर मोर छड़ी को ताले पर मारा। तुरन्त ताला टूटा और किवाड़ भी खुल गए। भक्त को भगवान के दर्शन हुए।
श्याम बहादुर जी उसी समय श्याम कुण्ड पहुँचे और कुण्ड में कूद पड़े। कुण्ड का जल दूध हो गया और उसमें जिसने भी स्नान किया, उसके समस्त रोग दूर हो गए।
श्री श्याम बहादुर ने बाबा से जब भी माँगा, भक्तों के लिए ही माँगा। इन्हीं की कृपा से स्व. आलूसिंह जी को भी श्याम प्रभु के साक्षात् दर्शन हुए थे।
संवत् 2008 में यह श्याम स्मरण करते हुए श्यामलीन हो गए।
।। जय श्री श्याम ।।


।। भक्त शिरोमणि आलूसिंहजी का जीवन परिचय ।।
श्री श्याम प्रभु के मंदिर सेवक परिवार में सन् 1916 में खाटू नगरी में भक्त शिरोमणि श्री आलूसिंह जी का जन्म हुआ था। इनके पिता श्री किशन सिंह जी हमेशा श्याम सेवा में ही लीन रहते थे। पिता की भक्ति के कारण आलूसिंह जी बचपन से ही श्याम के दीवाने हो गए।
इनकी शादी के कुछ समय बाद ही एक पुत्र श्री पाबूदान सिंह को छोड़कर इनकी पत्नी का देहांत हो गया। इसके बाद श्री आलूसिंह जी पूर्ण रूप से श्याम भक्ति में लग गए।
भक्ति की पराकाष्ठा में यह अपनी सुधबुध खो बैठे। वह श्याम भक्ति में लीन थे, परंतु लोग इन्हें पागल समझ बैठे। इनके परिवार वाले इनको रस्सियों में बांधकर श्री श्याम बहादुर जी के पास रेवाड़ी ले गए। श्री श्याम बहादुर जी ने इनकी रस्सियां खुलवा दीं और इनको अपना शिष्य बनाकर इनको आशीर्वाद दिया कि “दुनिया तुमको गुरु रूप में जानेगी” और कहा- “तुम्हारा तो जन्म ही श्याम प्रचार के लिए हुआ है।”
श्याम प्रभु एवं गुरु के आशीर्वाद से श्री आलूसिंह जी ने श्याम भक्ति को घर-घर फैला दिया। हर नगर में श्याम मंडलों की स्थापना करवाई, घर-घर में श्याम ज्योति जगाई। श्री मोतीलाल जी कानोड़िया द्वारा खाटू श्याम मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
श्री आलूसिंह जी श्याम प्रभु का कीर्तन जागरण प्रभु की ज्योति जगाकर किया करते थे। कीर्तनों के बीच में इनके द्वारा भक्तों के संकटों का निवारण होने लगा। आज घर-घर ली जाने वाली ज्योति, कीर्तन आदि के पूजन की समस्त विधि को श्री आलूसिंह जी ने ही व्यवस्थित रूप से दिया था।
अपने पौत्र श्री मोहन सिंह को मोहन दास नाम देकर अपना प्रमुख शिष्य बनाया और 2 अक्टूबर 1989 को यह श्याम भक्त श्याम चरणों में लीन हो गए।

|| भक्त शिरोमणि सोहनलाल जी लोहाकार का जीवन परिचय ||
श्री सोहनलाल जी लोहाकार का जन्म सन् 1903 में हुआ था। इनकी शादी 1918 में जयपुर निवासी सावित्री देवी जी के साथ हुई थी। विवाह के पश्चात इनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब होने के कारण एक रात इनको बिना भोजन के ही सोना पड़ा। सोते समय इन्होंने अपनी पत्नी से श्याम भक्ति और भजन संग्रह करने की चर्चा की, तो इनकी पत्नी ने कहा कि यदि इससे आपका जीवन सुधरता है तो मैं आपसे प्रार्थना करती हूं कि भगवान के भजन बनाओ और भक्ति ज्ञान प्राप्त करो।
ये सुनकर इन्होंने सूर्योदय होने से पहले शंकर भगवान का भजन – “भोला संभू जी महाराज म्हारी अरज सुनो …” बनाया। इनका रचित भजन – “थाली भरकर लायी खिचड़ो…” जिसे इन्होंने 1942 में जगन्नाथ पुरी में 7 दिनों के चिंतन के बाद बनाया था, आज भी श्याम भक्तों में काफी लोकप्रिय है।
उसके बाद ये भजन बनाते रहे और अन्य साथियों की सहायता से बहुत से भजन संग्रह कर छपवाते रहे। अपने स्वरचित 255 भजनों की 14 पुस्तकें छपवाईं। इनका निधन 2 अक्टूबर 2009 में 106 वर्ष की आयु में हुआ।
।। जय श्री श्याम ।।


|| भक्त पूज्य गुरुदेव पं० काशीरामजी शर्मा का जीवन परिचय ||
पूज्य गुरुजी काशीराम शर्मा का जन्म सोमवार दिनांक 6-10-1924 को पंजाब के ओबोहर नामक ग्राम में एक सम्राट पं. बालकिशन दास के यहाँ हुआ था।
इनका श्री श्याम प्रभु से लगाव प्रारंभ हुआ जो दिनों-दिन बढ़ता गया। गृहस्थ आश्रम में रहते हुए एवं सरकारी नौकरी करते हुए भी इन्होंने श्री श्याम बाबा की भक्ति की जो प्रचार एवं प्रसार किया, वह अनूठा है।
वे यह मानते थे कि श्याम प्रभु की कृपा से उन्हें जो भी मिला है, वह सबों का है और वे उसे सबों में बांट देना ही उचित समझते थे।
प्रभु ने ऐसी लीला की कि ऐसी ही एक फाल्गुन शुक्ला द्वादशी सम्वत् 2052, दिनांक 01-03-1996 को स्वयं श्याम प्रभु का मन अपने इस प्रेमी से मिलने को मचल उठा और उन्होंने अपने उस प्यारे को, जब हिसार में पूज्य गुरुजी श्याम प्रभु की पूजा, ज्योत का कार्य पूर्ण कर चुके थे, प्रातः 10:45 बजे अपने गोलोक धाम में बुला लिया और उनकी ज्योत को अपनी ज्योत में विलीन कर लिया।
उनके जीवन की लीला अनेकों को आज भी उष्णता प्रदान करती है। श्याम प्रभु के अन्यतम भक्तों में हिसारवासी गुरुजी पं. काशीराम जी शर्मा का नाम सदैव अविस्मरणीय रहेगा एवं श्रद्धा-विश्वास के साथ लिया जाता रहेगा।
।। जय श्री श्याम ।।